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उत्तराखंड में परोल पर छोड़े गए 255 कैदी फरार, नोटिस के बाद भी नहीं किया सरेंडर – Uttarakhand myuttarakhandnews.com

Latest posts by Sapna Rani (see all)Uttarakhand News: उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में कोविड-19 महामारी के दौरान परोल पर छोड़े गए 255 कैदियों के फरार होने की घटना ने सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. हल्द्वानी, नैनीताल, अल्मोड़ा और सितारगंज की जेलों से रिहा किए गए ये कैदी अपनी परोल की अवधि समाप्त होने के बाद जेल वापस नहीं लौटे हैं. इनमें से कई पर हत्या, डकैती और चोरी जैसे गंभीर अपराधों के आरोप हैं. जेल प्रशासन के बार-बार नोटिस भेजने के बावजूद, इन कैदियों ने आत्मसमर्पण नहीं किया, जिससे प्रशासन और पुलिस दोनों पर दबाव बढ़ गया है.कोविड-19 महामारी के समय जेलों में भीड़ को कम करने और संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए इन कैदियों को विशेष रूप से परोल पर छोड़ा गया था. सामान्य परिस्थितियों में परोल एक महीने की होती है, लेकिन महामारी के दौरान इसे तीन महीने तक बढ़ा दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, उत्तराखंड की जेलों से लगभग 581 कैदियों को परोल पर छोड़ा गया था, जिनमें 81 दोषी करार कैदी और 500 छोटे-मोटे अपराधों के आरोपी शामिल थे.आईजी कानून व्यवस्था, नीलेश भरणे के अनुसार, इन कैदियों में से कुछ ने वापस जेल लौटने से इंकार कर दिया, जिससे प्रशासन के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है. फरार कैदियों में हल्द्वानी जेल से 85, नैनीताल जेल से 40, सितारगंज जेल से 80 और अल्मोड़ा जेल से 50 कैदी शामिल हैं.सुरक्षा एजेंसियों की चिंताइस घटना के बाद राज्य के देहरादून मुख्यालय तक मामला पहुंच चुका है, और वरिष्ठ अधिकारियों ने इसे प्राथमिकता से निपटने का फैसला लिया है. पुलिस प्रशासन ने फरार कैदियों की खोज के लिए विशेष अभियान शुरू कर दिया है. उधम सिंह नगर के एसएसपी मणिकांत मिश्रा ने कहा कि, हमने विशेष टीमों का गठन किया है जो इन कैदियों को ढूंढने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही हैं. जल्द ही कैदियों को गिरफ्तार करने की उम्मीद है.परोल और फरलो के नियमजेल नियमों के अनुसार, सामान्य परिस्थितियों में कैदियों को अधिकतम एक महीने की परोल दी जाती है, जिसे विशेष परिस्थितियों में तीन महीने तक बढ़ाया जा सकता है. इनमें परिवार में मृत्यु या विवाह जैसे मामले शामिल हैं. इसके अतिरिक्त, दीर्घकालिक सजा काट रहे कैदियों को 14 दिनों की फरलो भी दी जा सकती है, जिसके लिए राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति आवश्यक होती है.फरार कैदियों को पकड़ने के लिए पुलिस और प्रशासन की टीमों को पहले ही सक्रिय किया जा चुका है. फरार कैदियों की सूची संबंधित पुलिस थानों को सौंप दी गई है और पुलिस टीमें लगातार इनकी खोज में लगी हुई हैं. प्रशासन द्वारा जिलावार रिपोर्ट मंगाई जा रही है ताकि सभी कैदियों की सही स्थिति का पता लगाया जा सके और उन्हें वापस हिरासत में लिया जा सके. इस घटना ने जेलों की सुरक्षा व्यवस्था और परोल प्रक्रिया की निगरानी पर भी सवाल खड़े किए हैं.