Latest posts by Sapna Rani (see all)देहरादून। उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) बिल को विधानसभा से पास कराए जाने के बाद अब इसे लागू करने के लिए नियमावली बनाने का काम शुरू कर दिया है। इसके लिए नौ सदस्यीय कमेटी गठित की गई है। प्रदेश सरकार ने इसी सप्ताह विधानसभा सत्र के जरिए यूसीसी विधेयक को मंजूरी दिलाई है। बिल को अब राज्यपाल के जरिये राष्ट्रपति के पास उनकी मंजूरी के लिए भेजा जाएगा, जिसके बाद ही यह कानून बन जाएगा, लेकिन इसे लागू करने के लिए नियमावली भी बनाई जानी है। जिसमें कानून लागू करने की प्रक्रिया, विभिन्न स्तर पर सक्षम प्राधिकारियों का निर्धारण और प्रस्तावित अधिनियम के प्रावधानों को तय किया जाना है।इस काम के लिए प्रदेश सरकार ने अब नियमावली तैयार करने के लिए नौ सदस्यीय कमेटी का गठन किया है। पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह की अध्यक्षता वाली इस नौ सदस्यीय कमेटी में अपर सचिव न्याय सुधीर सिंह, पुलिस उप महानिरीक्षक प्रशिक्षण बरिंदरजीत सिंह, दून विश्वविद्यालय की वीसी प्रो. सुरेखा डंगवाल और सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौड़ सदस्य के रूप में जबकि अपर सचिव कार्मिक, पंचायतीराज, शहरी विकास और वित्त को पदेन सदस्य बनाया गया है।इसमें शत्रुघ्न सिंह, प्रो. सुरेखा डंगवाल और मनु गौड़ यूसीसी का ड्राफ्ट तय करने के लिए गठित विशेषज्ञ कमेटी के भी सदस्य हैं। सूत्रों के अनुसार कमेटी पहले ही यूसीसी को लागू करने के लिए व्यापक खाका खींच चुकी है, इस कारण नई कमेटी को नियमावली लागू करने में बहुत समय नहीं लगेगा। उत्तराखंड विधानसभा आजाद भारत के इतिहास में समान नागरिक संहिता का विधेयक पारित करने वाली पहली विधानसभा बन गई है। अब अन्य सभी विधिक प्रक्रिया और औपचारिकताएं पूरी की जाएंगी जिसके बाद उत्तराखंड यूसीसी लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा।क्या है यूसीसी बिलयूसीसी बिल में प्रदेश में रहने वाले सभी धर्म-समुदायों के नागरिकों के लिए विवाह, संपत्ति, गुजारा भत्ता और विरासत के लिए एक समान कानून का प्रावधान है। हालांकि, अनुसूचित जनजातियों को इस विधेयक की परिधि से बाहर रखा गया है। यूसीसी बिल में महिलाओं और बच्चों के अधिकारों को संरक्षित करते हुए बाल विवाह, बहु विवाह, हलाला, इद्दत जैसी सामाजिक कुप्रथाओं पर रोक लगाने का प्रावधान है। इसके तहत विवाह का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है और ऐसा नहीं करने पर सरकारी सुविधाओं से वंचित करने का प्रावधान है। पति-पत्नी के जीवित रहते दूसरे विवाह को पूर्णतः प्रतिबंधित किया गया है, जबकि सभी धर्मों में विवाह की न्यूनतम उम्र लड़कों के लिए 21 वर्ष और लड़कियों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई है। वैवाहिक दंपती में यदि कोई एक व्यक्ति बिना दूसरे व्यक्ति की सहमति के अपना धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से तलाक लेने व गुजारा भत्ता लेने का पूरा अधिकार होगा। पति-पत्नी के तलाक या घरेलू झगड़े के समय पांच वर्ष तक के बच्चे की अभिरक्षा उसकी माता के पास ही रहेगी। सभी धर्मों में पति-पत्नी को तलाक लेने का समान अधिकार होगा। बेटा और बेटी का संपत्ति में समान अधिकार होगा। संपत्ति में अधिकार के लिए वैवाहिक और लिव-इन से पैदा बच्चों में भेदभाव को समाप्त करते हुए हर बच्चे को ‘वैध’ बच्चा माना जाएगा। लिव-इन का पंजीकरण भी अनिवार्य होगा।
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