― Latest News―

Homehindiउत्तराखंड में हरियाली तीज की धूम, जानें क्यों करती हैं महिलाएं व्रत,...

उत्तराखंड में हरियाली तीज की धूम, जानें क्यों करती हैं महिलाएं व्रत, क्या है धार्मिक महत्व? – Uttarakhand

Hariyali Teej celebrated in Uttarakhand, know why women observe fast, what is its religious significance?Hariyali Teej celebrated in Uttarakhand, know why women observe fast, what is its religious significance?Hariyali Teej celebrated in Uttarakhand, know why women observe fast, what is its religious significance?इस खबर को शेयर करेंLatest posts by Sandeep Chaudhary (see all)रामनगर: हिंदू धर्म में हरियाली तीज का त्योहार काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. मान्यताओं के अनुसार हरियाली तीज के दिन सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु और कुंवारी लड़कियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए व्रत करती हैं. ये व्रत न सिर्फ धार्मिक महत्व रखता है. बल्कि सामाजिक और पारिवारिक जुड़ाव का भी प्रतीक होता है. कहा जाता है कि यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक होता है.दांपत्य सुख और सौभाग्य का पर्व: हरियाली तीज मुख्यतः विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, जो इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं और अपने पति की लंबी उम्र, पारिवारिक सुख-शांति और वैवाहिक प्रेम के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं. व्रत के दौरान महिलाएं पारंपरिक श्रृंगार करती हैं और मां पार्वती को सोलह श्रृंगार की सामग्री जैसे हरी साड़ी, हरी-लाल चुनरी, सिंदूर, चूड़ियां, बिंदी, कंघी, बिछुआ, खोल, इत्र, दर्पण, मेहंदी और कुमकुम अर्पित करती हैं. माना जाता है कि इन वस्तुओं को माता को अर्पित करने से वैवाहिक जीवन में प्रेम, विश्वास और स्थिरता बनी रहती है.रामनगर में महिलाओं ने हरियाली तीज को धूमधाम से मनायाव्रत की परंपरा और आध्यात्मिक महत्व: धार्मिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने शिवजी को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कई जन्मों तक कठोर तप किया था. सावन के महीने में भगवान शिव ने उन्हें स्वीकार किया. यही दिन हरियाली तीज के रूप में मनाया जाता है. यह पर्व अखंड सौभाग्य का प्रतीक है और वैवाहिक जीवन की खुशहाली का व्रत माना जाता है.त्योहार केवल परंपरा नहीं, आस्था है: कई सालों से तीज का व्रत कर रहीं सावित्री अग्रवाल कहती हैं, हरियाली तीज हमारे हिंदू धर्म का सबसे पवित्र त्योहार है. इस दिन माता पार्वती ने शिवजी को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी और सावन के ही दिन उनका मिलन हुआ था. यही कारण है कि महिलाएं पूरे श्रद्धा से व्रत रखती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. वह कहती हैं महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं. सास के लिए बायना निकालती हैं और झूला झूलती हैं. आज भी यह त्योहार उतनी ही आस्था से मनाया जाता है जितना पहले.परिवार को जोड़ने वाला त्योहार: वर्षों से यह पर्व मना रहीं मीनाक्षी अग्रवाल बताती हैं कि, हरियाली तीज घर की महिलाओं को एक सूत्र में पिरोती है. इस दिन महिलाएं मिलकर पूजा करती हैं. पारंपरिक गीत गाती हैं और परिवार में आनंद का वातावरण बनता है. यह त्योहार केवल पति के लिए व्रत रखने तक सीमित नहीं है. बल्कि यह सामाजिक और भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक भी है. मीनाक्षी कहती हैं कि कुंवारी लड़कियां भी इस दिन व्रत रखती हैं. ताकि उन्हें योग्य वर प्राप्त हो. तीज के दिन घर-आंगन में उल्लास का माहौल बनता है.बुजुर्गों की परंपरा और अनुभव: करीब 4 दशकों से व्रत कर रहीं बुजुर्ग महिला निर्मला अग्रवाल कहती हैं कि तीज का त्योहार शिव-पार्वती के मिलन का प्रतीक है. पहले दिन महिलाएं मेहंदी लगाती हैं. फिर अगले दिन व्रत रखकर पूजा करती हैं. घरों में झूले डाले जाते हैं और महिलाएं पारंपरिक गीत गाकर झूला झूलती हैं. यह पर्व पीढ़ियों को जोड़ने वाली परंपरा है. वे बताती हैं कि इस दिन घेवर, फैनी और पकवान बनाए जाते हैं. बहु अपनी सास को बायना देती हैं. जिसमें वस्त्र, श्रृंगार सामग्री और मिठाइयां शामिल होती हैं. बायना देना सास-बहू के रिश्ते को सम्मान और स्नेह से जोड़ने का प्रतीक है.झूले, लोकगीत और उत्सव का रंग: हरियाली तीज के दिन झूले की विशेष परंपरा है. यह झूला पार्वती के मायके में बिताए गए उन पलों की स्मृति है, जब वे अपनी सखियों के साथ सावन में झूला झूलती थीं. आज भी महिलाएं तीज पर पारंपरिक गीतों के साथ झूले का आनंद लेती हैं. गीतों में पति-पत्नी का प्रेम, वर्षा का आनंद और सावन की स्नेहिल बौछार होती है. महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सजकर नृत्य-गान करती हैं और एक-दूसरे को तीज की बधाई देती हैं.घर-आंगन में बिखरी मिठास और श्रद्धा: तीज के मौके पर घरों में विशेष पकवान जैसे घेवर, पूड़ी, कचौड़ी, सेवइयां और फैनी बनाई जाती है. ये व्यंजन सिर्फ स्वाद के लिए नहीं, बल्कि पर्व की संपूर्णता के प्रतीक होते हैं. श्रृंगार से लेकर भोजन तक, हर चीज मां पार्वती को समर्पित होती है. महिलाएं दिनभर उपवास रखती हैं और शाम को कथा-पूजन के बाद ही व्रत खोलती हैं.