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Homehindi…तो ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना की वजह से सूख रहे पहाड़ी जल स्रोत

…तो ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना की वजह से सूख रहे पहाड़ी जल स्रोत

संकट- ऋषिकेश से कुछ किमी दूर तिमली गांव के सभी जल स्रोत और कई तालाब सूखे
एसडीसी फाउंडेशन ने जारी की 2024 की पहली उत्तराखंड मासिक आपदा एवं दुर्घटना रिपोर्ट
उदास रिपोर्ट का नाम बदला, अब उत्तराखंड डिजास्टर एंड एक्सीडेंट एनालिसिस इनिशिएटिव (उदय) के नाम से जानी जाएगी रिपोर्ट
जनवरी 2024 की उदय रिपोर्ट में चीला हादसा, जोशीमठ की स्थिति और रेल परियोजना के कारण सूखते जल स्रोत को प्रमुखता
देहरादून। देहरादून स्थित एनवायरनमेंटल एक्शन एंड एडवोकेसी समूह, एसडीसी फाउंडेशन ने अपनी जनवरी 2024 की आपदा एवं दुर्घटना रिपोर्ट जारी कर दी है। इस बार रिपोर्ट में चीला हादसे में वन विभाग के अधिकारियों की सड़क दुर्घटना में मौत, एक वर्ष बाद जोशीमठ की स्थिति और रेल परियोजना से सूखते जल स्रोत पर फोकस किया गया है।
पिछले 15 महीनों से मासिक रिपोर्ट उत्तराखंड डिजास्टर एंड एक्सीडेंट सिनोप्सिस, उदास के नाम से जारी की जा रही थी। अब इसे उत्तराखंड डिजास्टर एंड एक्सीडेंट एनालिसिस इनिशिएटिव, उदय नाम दिया गया है।
फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल के अनुसार रिपोर्ट के निरंतर जारी विश्लेषण, दस्तावेजीकरण और अन्य पहलुओं को देखते हुए नया नाम दिया गया है। अब यह मासिक रिपोर्ट उदय नाम से जारी की जाएगी। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग परियोजना के पैकेज दो और तीन में लोगों को पानी की उपलब्धता को लेकर दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इन लोगों की समस्या का समाधान रेलवे विकास निगम द्वारा अब तक नहीं किया गया है।
दोगी पट्टी के तीन दर्जन गांवों के पारंपरिक जल स्रोत प्रभावित हुए हैं। बताया जाता है कि यहां के कई गांवों को राज्य सरकार की जल जीवन मिशन और हर घर नल योजना से जोड़ा गया है, लेकिन इसके बावजूद लोगों को पीने का पानी नहीं मिल रहा है। ऋषिकेश से करीब 20 किमी दूर तिमली गांव के सभी जल स्रोत और वहां के कई तालाब सूख गए हैं। सरकारी नलों में पानी नहीं आ रहा है। मीडिया में सूखते जल स्रोत की खबरें लगातार नये संकट की ओर इशारा कर रही है।
चीला सड़क दुर्घटना
जनवरी के महीने में वन विभाग का वाहन ऋषिकेश के पास दुर्घटना ग्रस्त हुआ था। इस हादसे में वन विभाग के दो रेंजर्स सहित पांच लोगों की मौत हो गई थी। उदय रिपोर्ट में इस घटना को प्रमुखता से जगह दी गई है।
8 जनवरी, 2024 की रात को उत्तराखंड के राजाजी टाइगर रिजर्व के चीला रेंज में परीक्षण के लिए लाए गए एक इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से दो वन रेंजरों सहित चार लोगों की मौत हो गई थी और एक महिला वार्डन लापता हो गई थी। तीन दिन बाद महिला वार्डन का शव बरामद हुआ। 5 अन्य लोग इस हादसे में घायल हो गये थे।
मृतकों की पहचान वन्यजीव रक्षक आलोकी देवी, वन रेंज अधिकारी शैलेश घिल्डियाल और प्रमोद ध्यानी, सैफ अली खान और कुलराज सिंह के रूप में हुई थी। अधिकारियों के अनुसार, जैसे ही ईवी वाहन चीला से ऋषिकेश की ओर जा रही थी, चीला पावर हाउस से आगे एक पेड़ से टकरा गई और शक्ति नहर के पैरापिट से टकरा गई। टक्कर में कार में बैठे कुछ लोग खाई में गिर गए, जबकि आलोकी देवी नहर में गिर गई। उनके पीछे दूसरे वाहन में यात्रा कर रहे लोगों ने पुलिस और पार्क प्रशासन को हादसे की जानकारी दी।
जोशीमठ भू-धंसाव का एक वर्ष
उदय की जनवरी 2024 की रिपोर्ट में जोशीमठ भू-धंसाव को एक बार फिर प्रमुखता दी गई है। यह भू-धंसाव एक वर्ष पहले जनवरी 2023 में शुरू हुआ था। घरों में दरारें आने के कारण कई परिवारों को अपने घर छोड़ने पड़े थे। 4 जनवरी, 2023 को जोशीमठ के मारवाड़ी इलाके में जमीन से पानी फूटने के बाद शहर के कई हिस्सों में दरारें बढ़ गई थी। सरकारी रिकॉर्ड बताते हैं कि शहर के नौ वार्डों में 868 निर्माणों में दरारें आ गईं, जबकि 181 इमारतों को असुरक्षित माना गया।
रिपोर्ट के अनुसार एक साल बाद भी एक दर्जन से ज्यादा परिवार जिला प्रशासन द्वारा स्थानीय होटलों, गेस्ट हाउस और लॉज में बनाए गए राहत शिविरों में हैं। कुछ लोगों को एकमुश्त मुआवजा मिला है, लेकिन कई को अब तक कुछ नहीं मिला है। लोग इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि वे अपने असुरक्षित हो चुके घरों में वापस लौट पाएंगे या नहीं।
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार को कम से कम प्रभावित लोगों को सूचित करना चाहिए, जिससे वे योजना बना सकें और अपने जीवन में आगे बढ़ सकें।
उदय रिपोर्ट, उत्तराखंड और आपदा प्रबंधन
अनूप नौटियाल ने कहा कि उत्तराखंड को अपने आपदा प्रबंधन तंत्र और क्लाइमेट एक्शन की कमज़ोर कड़ियों को मजबूत करने की सख्त ज़रूरत है। उन्होंने उम्मीद जताई कि उत्तराखंड उदय मासिक रिपोर्ट उत्तराखंड के राजनीतिज्ञों, नीति निर्माताओं और अन्य हितधारकों के लिए सहायक होगी। साथ ही आपदाओं से होने वाले नुकसान के न्यूनीकरण के लिए नीतियां बनाते समय भी संभवत इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा।