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उत्तराखंड में सरकारी खजाने की किस प्रकार बंदरबांट की जाती है ये किसीसे छुपा नहीं है ।सरकारी खजाने का एक बड़ा बजट विज्ञापनो पर भी जाता है ।वो विज्ञापन जो पत्रकारों और मीडिया हाऊस की आमदनी का साधन माना जाता है ।सभी मेहनतकश पत्रकार कई कोशिश करते है कि उनको सूचना विभाग से कोई विज्ञापन मिल जाये तो उनके बेसिक खर्च निकल जाये ।लेकिन वक्त के साथ इन विज्ञापनो पर भी सत्ता की चाटुकारिता करने वाले लोगों का कब्जा हो गया या फिर अंदरखाने ही अपने नाते रिश्तेदार और चेहतों को ये विज्ञापन बांटे जाने लगे ।ताजा मामला 71लाख के भुगतान का है ये भुगतान सूचना विभाग द्वारा ऐशी मैग्जिन को दिया गया है जिसका उत्तराखंड में शायद किसीने नाम सुना भी हो।पत्रकार जगत में इस बिल को ले कर काफी विरोध देखने को मिल रहा है । लोगों का कहना है कि कई एशे पोर्टल और अखबार है जिनका खबरों से कोई लेना देना नहीं उनको करोड़ों का विज्ञापन सूचना विभाग द्वारा दिया जा रहा है।जबकि उत्तराखंड में कई रिपोर्टर है जो गांव गांव जाकर खबर दिखाते हैं आपदा के समय लोगों के बीच रहते हैं।उनको सूचना विभाग द्वारा कभी एक विज्ञापन नहीं दिया जाता ।कुछ लोगों का कहना है कि जिन्होंने उत्तराखंड में कई जनसरोकार के मामले उठाए, कई भ्रष्टचार संबंधी मुद्दे खोले, वो सब आपके विज्ञापन श्रेणी से हमेशा बाहर रहते हैं यहां तक कि सूचना विभाग उन्हें पत्रकार ही नहीं मानता उल्टा जनहित मुद्दों पर वक्ताओं की बात रखने पर उनपर मुकदमें लगा दिये जाते है ।कई पत्रकारों का कहना है कि क्योंकि उनके अंदर उत्तराखंड का दर्द है ,वो यहां के मूलनिवासी हैं वो सरकार की खराब नीतियों को जनता के समक्ष रखते हैं । पर उत्तराखंड में सारा सरकारी विज्ञापन का पैसा बाहर के अखबार,मैग्जिन और पोर्टल को जा रहा है।
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