― Advertisement ―

Homehindiक्या है उत्तराखंड के मतदाताओं का मन :क्या इस बार होगा बदलाव...

क्या है उत्तराखंड के मतदाताओं का मन :क्या इस बार होगा बदलाव ?? – myuttarakhandnews.com


उत्तराखंड :आखिर चुनाव से पहले का जन आक्रोश क्यों नहीं दिखता उत्तराखंड के चुनाव नतीजो पर?क्या है उत्तराखंड के मतदाताओं का मन ?चुनाव से पहले जनता कहीं ना कहीं परेशान होती है कई आंदोलन होते हैं, सोशल मीडिया पर कई तरह के ट्रेंड चलते हैं परंतु विगत कुछ सालों से देखा जा रहा है कि चुनाव से पहले का जो जनता में असंतोष होता है उसका चुनाव नतीजों पर असर नहीं दिखता ।इसकी असली वजह क्या है ?एक धरातलीय सर्वे बताता है कि कारण यह भी है कि उत्तराखंड का जो असली वोटर है ,अगर मैदानी जिलों की बात छोड़ दी जाए तो पहाड़ी जिलों के वोटर फिक्स होते हैं,जो वर्षों से सिर्फ चुनाव चिन्ह देख कर वोट देते हैं यहां तक कि उनको उम्मीदवार का नाम तक पता नहीं होता।इसी आदत को सत्ता पक्ष अच्छी तरह जानता है, यहीं वजह अक्सर देखने को मिलता है कि सोशल मीडिया पर जो एक विद्रोह का भाव या असंतोष का भाव दिखता है वह अधिकतर वह युवा पीढ़ी है जो रोजगार की तलाश में उत्तराखंड से बाहर है ,उत्तराखंड से बाहर होने के कारण सिर्फ वोटिंग के दिन उनका उत्तराखंड आना ज्यादतर संभव नहीं होता ।लेकिन उत्तराखंड से जुड़ाव होने के कारण वह उत्तराखंड संबंधित मुद्दों पर अपनी टिप्पणी जरूर देते हैं।जिससे कि सोशल मीडिया या फिर मीडिया के सामने एक असंतोष का भाव दिखता है ।दूसरा पक्ष वो संगठन भी है जो सिर्फ आंदोलन इसलिए करते है कि इनकी मांगे पूरी हो सरकार पर दबाव बनाया जा सकें । जैसे उनकी मांगे पूरी होती है वह फिर से सत्ता पक्ष के लिए कार्य करना पर प्रारंभ करते हैं ।अगर ग्रामीण पहाड़ी क्षेत्रों की बात करें तो कई बुजुर्ग ऐशे है जिनको लगता है कि अगर वो सता पक्ष को वोट नहीं करेंगे तो उनकी पेंशन , उनकी फ्री सुविधाएं या उनके बच्चों की नौकरी पर सीधा असर पड़ेगा ।उंनको आज भी ये लगता है कि चुनावी बस्ते के साथ बैठा व्यक्ति उनके वोट पर नजर रख रहा है ।इसलिए श्याद केंद्र में काबिज पार्टी को उत्तराखंड में भी बहुमत मिलता है ।
इसी तरह कुछ नेता जो निरंतर जनता के बीच रहकर कार्य करते हैं परंतु यदि वह चुनाव में उठते हैं तो एक प्रत्याशी के तौर पर वह पूर्णता असफल होते हैं ।कहीं ना कहीं उत्तराखंड के बुजुर्गों का एक मन सेट है कि नेता बड़े-बड़े गाड़ियों में घूमने वाले और बड़े-बड़े मंचों से बात करने वाले ही होने चाहिए ,ना कि उनके बीच रहने वाला व्यक्ति जो हमेशा उनके लिए लड़ने के लिए तैयार रहता है।इसका बेहतरीन उदाहरण कम्युनिस्ट पार्टी के कई उम्मीदवार आपको देखने को मिलेंगे जो निरंतर जनहित मुद्दों पर लड़ते रहते हैं , जनता के बीच कार्य करते हैं परंतु जब वह चुनाव में खड़े होते हैं तो उनको बहुत कम मत मिलते हैं ।हालांकि कुछ वर्षों से उत्तराखंड की जनता क्षेत्रीय दलों जैसे यूकेडी के प्रति जागरूक तो हुई है परंतु यह जागरूकता सिर्फ छोटे-छोटे कस्बों शहरों तक ही सीमित है ।ग्रामीण क्षेत्र की जनता ने यूकेडी जैसे क्षेत्रीय दल को भुला दिया है ।यदि आप ग्रामीण क्षेत्र की बात करें तो 50 से 70 वर्ष वाले 100 में से सिर्फ दो व्यक्ति आपको ऐसे मिलेंगे जिन्हें उन्हें यूकेडी का नाम तक याद होगा ।कुल मिलाकर उत्तराखंड की जनता अभी भी प्रधानमंत्री के नाम पर वोट करती है यह इसीलिए शायद हमारे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी जो हमेशा सुर्खियों में रहते हैं और युवा मुख्यमंत्री के तौर पर कार्य कर रहे हैं वह चुनाव आते ही मोदी जी के नाम पर वोट मांगना शुरू कर रहे है ।सांसद विधायकों की तो बात ही अलग है उत्तराखंड की जनता सिर्फ दो दलों भाजपा और कांग्रेस के मध्य सीमित हो चुकी है।हालांकि अब यह देखना होगा कि इस बार जो लोकसभा चुनाव में युवा , निर्दलीय , नये चेहरे उतरे हैं उनको उत्तराखंड की जनता कितना प्यार देती है । राजशाही और दिल्ली से थोपे नेताओं के प्रति भी उत्तराखंड की जनता क्रोधित है । इस बार युवाओं ने अपने विचार खुल कर प्रकट किये है और राजनीति में अपनी दिलचस्पी दिखाई है ।

Post Views: 43

Post navigation